🔷 प्रस्तावना: सहकारिता क्षेत्र में नया युग
भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय ने राष्ट्रीय सहकारिता नीति – 2025 को प्रस्तुत किया है, जो भारत की सहकारी आंदोलन की दिशा में एक ऐतिहासिक और परिवर्तनकारी कदम है। यह दूसरी राष्ट्रीय नीति है — पहली नीति 2002 में लागू की गई थी। यह नीति सहकारिता क्षेत्र को समावेशी, प्रतिस्पर्धी और भविष्य के लिए सक्षम बनाने की प्रतिबद्धता को दोहराती है।
🔷 नीति के स्तंभ और लक्ष्य
नीति को 6 प्रमुख स्तंभों पर आधारित किया गया है:
नींव को मजबूत करना जीवंतता को बढ़ावा देना भविष्य के लिए सहकारिताओं को तैयार करना समावेशिता बढ़ाना और पहुँच का विस्तार नए क्षेत्रों में विस्तार युवा पीढ़ी को तैयार करना
मुख्य लक्ष्य हैं:
वर्ष 2034 तक सहकारिता क्षेत्र का GDP में योगदान तीन गुना करना, सहकारी संस्थाओं की संख्या को 30% तक बढ़ाना (वर्तमान में 8.3 लाख), 50 करोड़ नए या निष्क्रिय नागरिकों को सक्रिय भागीदारी में लाना, प्रत्येक गाँव में एक सहकारी इकाई और प्रत्येक तहसील में 5 मॉडल सहकारी गाँव विकसित करना (NABARD की सहायता से), प्रत्येक पंचायत में एक PACS या प्राथमिक सहकारी इकाई की स्थापना करना।
🔷 सहकारिता क्या है?
सहकारी संस्था एक ऐसी संस्था होती है जो अपने सदस्यों के द्वारा चलाई जाती है और जिनका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं बल्कि सदस्यों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। यह संस्था “एक सदस्य, एक मत” के सिद्धांत पर आधारित होती है, जिसमें प्रत्येक सदस्य की बराबरी होती है।
🔷 ग्रामीण भारत की रीढ़: सहकारिता
भारत की 65% से अधिक जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और सहकारी संस्थाएँ इन क्षेत्रों में कृषि ऋण, विपणन, बीज, खाद, और अन्य सेवाएं प्रदान करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाती हैं।
उदाहरण के लिए – अमूल जैसे सहकारी मॉडल ने लाखों भूमिहीन और सीमांत दुग्ध उत्पादकों को सशक्त बनाया है।
PACS (Primary Agricultural Credit Societies) ग्रामीण ऋण वितरण की पहली इकाई होती हैं।
🔷 संवैधानिक संरक्षण: 97वां संशोधन अधिनियम, 2011
सहकारी संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 द्वारा दिया गया।
अनुच्छेद 19 में सहकारी संस्था बनाने का मौलिक अधिकार जोड़ा गया। अनुच्छेद 43-बी के रूप में एक नया राज्य नीति निदेशक सिद्धांत जोड़ा गया। भाग IX-B (अनुच्छेद 243-ZH से 243-ZT) जोड़ा गया जो सहकारी संस्थाओं की संरचना और शासन को विनियमित करता है। बहु-राज्य सहकारी संस्थाओं के लिए संसद को और अन्य सहकारिताओं के लिए राज्य विधानसभाओं को कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
🔷 हाल की प्रमुख सरकारी पहलें
सरकार ने सहकारिता क्षेत्र को सशक्त बनाने हेतु कई कदम उठाए हैं:
गुजरात के आनंद में त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना। NABARD द्वारा मॉडल सहकारी गाँव कार्यक्रम की शुरुआत। सहकार टैक्सी योजना – जिसमें ड्राइवरों को लाभ में साझेदारी मिलती है। बहु-राज्य राष्ट्रीय सहकारी समितियों की स्थापना – निर्यात, बीज उत्पादन, जैविक उत्पाद विपणन के लिए। महिलाओं की भागीदारी पर केंद्रित श्वेत क्रांति 2.0। PACS का विस्तार – जन औषधि केंद्र, एलपीजी वितरण, ईंधन सेवा, और ग्रामीण बुनियादी ढांचे में।
🔷 निष्कर्ष: सहकारिता से आत्मनिर्भरता की ओर
राष्ट्रीय सहकारिता नीति – 2025 एक दूरदर्शी पहल है, जो सहकारिताओं को समावेशी और सतत विकास का इंजन बनाने की दिशा में काम करती है। भारत के स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने तक (2047), एक सशक्त और आधुनिक सहकारी क्षेत्र भारत को आत्मनिर्भर और सामाजिक रूप से सशक्त राष्ट्र बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।