
यह संपादकीय महाराष्ट्र स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी (MSPS) विधेयक, 2024 की आलोचना करता है और चेतावनी देता है कि यह भारत की एक खुली और लोकतांत्रिक समाज के रूप में पहचान को खतरे में डालता है। यह विधेयक, जिसे भाजपा नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने पेश किया है, राज्य सरकार को किसी भी संगठन को “गैर-कानूनी संगठन” घोषित करने और उन विचारों या कार्यों को अपराध घोषित करने की अनुमति देता है जो सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा माने जाते हैं। इसमें मौखिक या प्रतीकात्मक अभिव्यक्तियों जैसी अस्पष्ट और व्यापक परिभाषाएं भी शामिल हैं।
लेख में तर्क दिया गया है कि ऐसी विधियां, माओवादी गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई के बहाने, राजनीतिक आलोचकों, असहमति जताने वालों और सिविल सोसाइटी के सदस्यों के खिलाफ दुरुपयोग की जा सकती हैं। यह भी उल्लेख किया गया है कि छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में इसी प्रकार के कानून पहले से मौजूद हैं, लेकिन महाराष्ट्र का यह विधेयक कार्यपालिका की शक्तियों को और भी अधिक बढ़ाता है और नागरिक स्वतंत्रताओं को सीमित करता है।
हालाँकि कुछ कमजोर विरोध हुआ, लेकिन यह विधेयक आसानी से पारित हो गया, जिससे यह चिंता उठी कि यह सहमति आधारित दमन की ओर इशारा करता है। लेख का निष्कर्ष है कि विचार और अभिव्यक्ति को दंडित करना भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा है और यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और खुले विमर्श जैसे भारत के मूलभूत सिद्धांतों को कमजोर करता है।
📌 मुख्य परीक्षा हेतु मूल्य संवर्धन (Value Addition):
🔹 संबंधित संवैधानिक अनुच्छेद:
अनुच्छेद 19(1)(क): भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
🔹 प्रमुख सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015): सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A को अस्पष्ट और अभिव्यक्ति को ठंडा करने वाला बताते हुए निरस्त किया गया। केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962): देशद्रोह की सीमाओं को स्पष्ट किया गया।
🔹 हाल की घटनाएँ (Recent Events):
विभिन्न राज्यों में अभिव्यक्ति और असहमति की आपराधिकता में वृद्धि। नागरिक समाज के सदस्यों पर UAPA जैसे कड़े कानूनों का उपयोग।
📝 सामान्य अध्ययन पत्र 2 – शासन, संविधान, राजनीति, सामाजिक न्याय और अंतर्राष्ट्रीय संबंध
1. “विचार और भाषण को अपराध घोषित करने वाले कानून लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा हैं।” इस कथन के आलोक में महाराष्ट्र स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी विधेयक, 2024 की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
(250 शब्द)
2. भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े संवैधानिक सुरक्षा प्रावधानों की विवेचना कीजिए। महाराष्ट्र स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी विधेयक, 2024 इन अधिकारों को किस प्रकार चुनौती देता है?
(250 शब्द)
3. “सार्वजनिक सुरक्षा के नाम पर कार्यपालिका की अति-हस्तक्षेप की प्रवृत्ति विधि के शासन को कमजोर करती है।” इस कथन पर महाराष्ट्र स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी विधेयक, 2024 के संदर्भ में चर्चा कीजिए।
(150 शब्द)
4. राज्य स्तरीय सुरक्षा कानूनों में “गैर-कानूनी गतिविधियों” की अस्पष्ट और व्यापक कानूनी परिभाषाओं से उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। उदाहरण स्वरूप, MSPS विधेयक, 2024 के प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
(250 शब्द)
5. राज्य की आलोचना और असहमति को अपराध घोषित करने के क्या प्रभाव हो सकते हैं? भारत के एक खुले और बहुलतावादी समाज के रूप में दर्ज़े के संदर्भ में विश्लेषण कीजिए।
(150 शब्द)
🧭 सामान्य अध्ययन पत्र 4 – नैतिकता, अखंडता और अभिवृत्ति
6. “नैतिक शासन व्यवस्था में राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रताओं के बीच संतुलन आवश्यक है।” महाराष्ट्र स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी विधेयक, 2024 के संदर्भ में इस द्वंद्व पर चर्चा कीजिए।
(150 शब्द)
7. राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर असहमति को दबाने वाले कानूनों के निर्माण से जुड़ी नैतिक चुनौतियों की चर्चा कीजिए। हाल के राज्य स्तरीय विधानों का उदाहरण दीजिए।
(250 शब्द)